Special Report: केन्द्र और राज्य के बीच तनातनी से दिल्ली में गहराता कोरोना

Special Report: केन्द्र और राज्य के बीच तनातनी से दिल्ली में गहराता कोरोना

नरजिस हुसैन

कोरोना की शुरूआत से ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना की दवाई या वैक्सीन न आने की हालत में इसका पहला बचाव टेस्टिंग, टेस्टिंग, टेस्टिंग ही बताया था। पूरी दुनिया में जो देश कोरोना से उबरे उन्होंने भी इसी बात पर अमल किया। टेस्टिंग, कांटैक्ट ट्रेसिंग, आइसोलेशन और ट्रीटमेंट इसी चार फार्मूले को देश दुनिया सब जगह माना जा रहा है। महाराष्ट्र और तेलंगाना सरकार भी इसे नियम से मान रही है। लेकिन, यहां दिल्ली सरकार ने जो एसिम्टोमैटिक लोगों के टेस्ट को मना किया तो उन्हीं लोगों ने न जाने और कितने लोगों को जाने-अनजाने इंफेक्ट किया जिसका नतीजा आज हम सबके सामने है।

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2019 में दिल्ली चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीजवार अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की जनता के सामने अपनी पिछली दो उपलब्धियों के बारे में कूब जोरों शोर से बताया था पहला- शिक्षा और दूसरी स्वास्थ्य। तो इस बड़ी पहल और उपलब्धी के बाद महामारी के वक्त उसी सरकार की पहल और समझ को क्या हुआ। 2014 से लेकर 2019 तक दिल्ली सरकार ने स्वास्थ्य बजट 40 प्रतिशत तक बढ़ाया। मोहल्ला क्लीनिक और पॉलिक्लीनिक्स के जरिए अपनी जनता को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं देने वाली सरकार आखिर कोरोना में कहां और कैसे चूक गई। गुजरात सरकार ने हाई कोर्ट में अपीन करके कहा था कि वह कोरोना के सही आंकड़े इसलिए नहीं बता रही कि अगर टेस्टिंग होगी तो राज्य की 70 फीसद जनता कोरोना पॉजिटिव निकलेगी जिससे एक डर का माहौल बन जाएगा। तो क्या इसी तर्ज पर दिल्ली सरकार ने भी टेस्टिंग न करने की सोची या फिर अपनी लापरवाही को छुपाने के लिए दिल्ली की जनता को खतरे में डाल दिया। सिर्फ दिल्ली ही नहीं उतर प्रदेश और बिहार सरकार ने भी टेस्टिंग में कोताही बरती है जिससे यहां भी कोरोना का खतरा बढ़ा है।  

हाल ही में दिल्ली सरकार ने सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में कोरोना के लिए सुरक्षित बेड के खाली और भरे होने की जानकारी के लिए एक ऐप भी बनाया। अब इस ऐप में और कागज पर लिखे आंकड़ों में इतनी गड़बड़ियों के मामले सामने आ रहे है कि राज्य सरकार इसे लांच करके खुद परेशान है। प्राइवेट अस्पताल ऐप की जानकारी के मुताबिक कितने ही ऐसे मजबूर लोगों को भर्ती करने में अनाकानी कर रहे है जिनसे वे मोटी फीस नहीं ऐंठ पाते। मुख्यमंत्री ने बीच बचाव कर ऐसे सभी प्राइवेट अस्पतालों को लताड़ा जो ऐप पर बेड की गलत जानकारी दे रहे हैं ताकि उसकी ब्लैक मार्केटिंग की जा सके। तो मरीजों की सहूलत की लिए लांच किया गया ऐप अब दिल्ली सरकार की सरदर्दी बन चुका है।

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पिछले ही हफ्ते मुख्यमंत्री केजरीवाल ने कहा एक बयान जारी कर यह कहा था कि 15 जुलाई तक दिल्ली को 80,000 बेड की जरूरत पड़ेगी। क्योंकि अब पड़ोसी राज्यों के मरीजों का इलाज भी यहां हो रहा है। हालांकि, बेड का सटीक नंबर 1.5 लाख तक उन्होंने बताया। अब यह उन्होंने किसी आधार पर कहा यह तो नही बताया लेकिन, क्या बेड की संख्या बढ़ाने भर से कोरोना के मरीजों की जान मुख्यमंत्री बचा पाएंगे या उनके पास कोई और कारगर या ठोस योजना है। बेड के नंबर बढ़ाने का मतलब है उसी हिसाब से डॉक्टर, नर्स, सफाई कर्मी और पैरा मेडिकल स्टाफ की तादाद में भी इजाफा जिसकी बात मुख्यमंत्री ने कहीं नहीं की।

5 जून, 2020 में देश में कोविड-19 से लड़ने के लिए मौजूदा मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर

  • 957, बेड खास कोरोना मरीजों के लिए, 1,66,460 आइसोलेशन बेड, 21,473 आईसीयू बेड और 72,497 ऑक्सीजन वाले बेड
  • 2,362 कोरोना के हेल्थ सेंटर जहां 1,32,593 आइसोलेशन बेड, 10,903 आईसीयू बेड और 45,562 ऑक्सीजन वाले बेड
  • 11,210 क्वारेंटाइन सेंटर, 7,529 कोविड केयर सेंटर जहां 7,03,786 बेड है
  • 128.48 लाख एन95 मास्क और 104.74 लाख पीपीई राज्यों/केन्द्र शासित राज्यों/केन्द्रीय संस्थानों के पास

विपक्षी कांग्रेस ने मुख्यमंत्री के कोरोना पर शुरू से गैर-जिम्मेदाराना रवैए को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में उठाया जहां से मुख्यमंत्री और केन्द्र सरकार को 10 जून को एक नोटिस भी जारी हुआ है।

कोरोना को लेकर दिल्ली सरकार की लापरवाहियों की फेहरिस्त लंबी है। शुरू में ही राज्य सरकार ने लोक नायक जयप्रकाश अस्पताल, लेडी हार्डिग मेडिकल कॉलेज, ऐम्स और राम मनोहर लोहिया अस्पताल को कोविड-19 के लिए सुरक्षित रखा था। लेकिन जब दिल्ली में कोरोना से मरने वाले लोगों का आंकड़ा केन्द्र सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय को देना था तो दिल्ली के दिए आंकड़ों में (116 बनाम 66) काफी अंतर था। इस बारे में चारों ही अस्पतालों के मेडिकल सुपरिटेंडेंट का कहना था कि जो आंकड़े उन्होंने दिल्ली सरकार को दिए वे पूरी तरह इस्तेमाल नहीं हुए और दिए नंबरों से कम थे। 20 अप्रैल को दिल्ली सरकार ने एक कमेटी गठित कर ऑडिट करना शुरू किया। इसमें सरकारी और प्राइवेट दोनों ही अस्पतालों को सीधे कमेटी को ही कोरोना से मरने वालों की सही संख्या बताने को कहा गया। अब ऐसा क्यूं हुआ और कहां गड़बड़ी थी इसका पता नहीं चला।

अभी 10 जून को ही दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सतेन्द्र जैन ने दिल्ली में कम्युनिटी ट्रांसमिशन की बात कही। लेकिन उनका यह भी कहना था कि क्योंकि यह एक तकनीकी चीज है तो इसकी घोषणा आधिकारिक तौर पर केन्द्र सरकार को ही करनी होगी लेकिन, केन्द्र ने फिलहाल इस बारे में कुछ नहीं कहा है। ऐम्स के निदेशक डॉक्टर रणदीप गुलेरिया ने भी कहा है कि दिल्ली के कंटामिनेटेड जोन्स में कोरोना का कम्युनिटी ट्रांसमिशन है।

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बहरहाल, दिल्ली इस वक्त ऐसे दोराहे पर खड़ी है जहां या तो राज्य सरकार की लापरवाही या फिर केन्द्र और राज्य सरकार की महामारी को लेकर राजनीति और तनातनी इस हद तक बढ़ गई है जिसमें लोगों की जान दांव पर है। यहां यह कहना भी मुश्किल है कि महामारी में राज्य की ज्यादा गलती या लापरवाही है या केन्द्र सरकार की। जिस तरह से दोनों सरकारे एक-दूसरे पर तोहमत लगा रही है उससे कोरोना खत्म होगा या इंसान। या ये माना जाए कि कहीं न कहीं दोनों ही सरकारें अपनी जिम्मेदारियों से बचने के लिए चीजों को साफ नहीं कर रही क्योंकि महामारी नहीं लेकिन राजनीति का तो यही तकाजा है।

 

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